प्रदेश में मसालों की खेती से किसानों की आय में हो रही वृद्वि
भारत विश्व में मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता एवं निर्यातक देश
मसाला फसलों का उत्पादन अत्यधिक आर्थिक समृद्धि का एक प्रमुख जरिया
शमीम अहमद संपादक
बिजनौर। भारत प्राचीन काल से ही मसालों की भूमि के नाम से जाना जाता रहा है। मसाला एक लो वॉल्यूम एवं हाई वैल्यू वाली फसल हैं। अंतर्राष्ट्रीय मानक संगठन के अनुसार विश्व के विभिन्न भागों में 109 मसाला प्रजातियों की खेती की जाती है। भारत में भी विभिन्न प्रकार की मृदा एवं जलवायु होने के कारण 20 बीजीय मसालों सहित कुल 63 मसाला प्रजातियां उगाई जाती है। भारत विश्व में मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता एवं निर्यातक देश है। भारत के कुल मसाला उत्पादन का 90 प्रतिशत घरेलू माँग की पूर्ति में उपयोग होता है तथा उत्पादन का लगभग 10 प्रतिशत भाग विश्व के करीब 130 देशों में निर्यात होता है।
वर्तमान में भारत में मसालों का उपभोग 3.25 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष है, जिसमें परिवार के कुल खाद्य का 4.4 प्रतिशत खर्च होता है। कुल कृषि निर्यात में मसालों की हिस्सेदारी 6 प्रतिशत है। कुल विभिन्न मसालों के निर्यात में मिर्च की हिस्सेदारी 42 प्रतिशत, बीजीय मसालों की 25 प्रतिशत, हल्दी 5 प्रतिशत, अदरक 4 प्रतिशत व अन्य मसालों की 7 प्रतिशत है। विश्व में मसालों की अनुमानित माँग वृद्धि 3.19 प्रतिशत है, जो की जनसंख्या वृद्धि दर से ठीक ऊपर है। उत्तर प्रदेश में किसानों को उत्पादकता बढ़ाने हेतु उन्नतशील बीज, उन्नत कृषि तकनीक के साथ साथ मसालों पर शोध एवं किसानों को प्रशिक्षण देते हुए मसाला उत्पादन में बढ़ोत्तरी की जा रही है।
उत्तर प्रदेश के कृषक खरीफ में हल्दी, अदरक, मिर्च एवं प्याज आदि की खेती करते है तथा रबी मौसम में धनिया, सौंफ, मेथी, लहसुन, अजवाइन, कलौंजी एवं मंगरैल आदि की खेती करते हैं। प्रदेश में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अबतक विभिन्न मसाला फसलों की 11 प्रजातियों का विकास किया गया है। अदरक उत्पादन में भारत विश्व में सबसे आगे है। अदरक का प्रयोग मसाले, औषधीय तथा सामग्री के रूप में हमारे दैनिक जीवन में वैदिक काल से चला आ रहा हैं।
लहसुन भी किसानों को एक अधिक आय देने वाली महत्वपुर्ण मसाले की फसल है इसके रोजाना प्रयोग करने से पाचन क्रिया में सहायता एवं मानव रक्त में कोलेस्ट्रॅल की भी कमी होती है। मिर्च एक सर्वाधिक निर्यात की जाने वाली मसाला की फसल है। मेथी का प्रयोग सब्जियों एवं खाद्य पदार्थों में किया जाता है। औषधीय गुणों के कारण इसका उपयोग जोड़ों के दर्द निवारण, मधुमेह रोग एवं प्रसूता स्त्री के दुग्ध वृद्धि के लिये किया जाता है।
सौंफ का उपयोग मसाला, खाद्य एवं पेय पदार्थों में किया जाता है। औषधि गुणों के कारण इसका उपयोग खांसी में लाभ हेतु एवं बच्चों की पाचन विकार एवं अन्य रोग उपचार में किया जाता है। मसालों की फसलें अन्य परम्परागत कृषि फसलों की अपेक्षा अधिक आय देने वाली होती हैं। उत्तर प्रदेश में मसालो को नकदी उत्पाद बनाकर स्वरोजगार के साथ-साथ ग्रामीण एवं शहरी श्रमिकों को भी मसाला उद्योग में रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है।
मसाला फसलें शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार एवं अधिक आय के सुअवसर प्रदान करने के कारण अत्यधिक आर्थिक समृद्धि का एक प्रमुख जरिया है। मसालों की खेती से देश एवं प्रदेश की अर्थव्यवस्था में और अधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। वर्तमान में चल रहे भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश के प्रमुख संचालित कार्यक्रमों से किसानों की आय दोगुनी करने में मसालों की फसलें काफी लाभप्रद एवं सहायक सिद्ध हो रही है।