शिक्षा अधिनियम के होते लूट रहे हैं अभिभावक

शिक्षा अधिनियम के होते लूट रहे हैं अभिभावक

रिपोर्ट, न्यूज़ इण्डिया टुडे ब्यूरो
जयपुर। शिक्षा अधिनियम का लाभ आमजन तक नहीं पहुंच रहा सरकार की गलत शिक्षा नीति के कारण व सरकारी स्कूलों की दुर्दशा के कारण प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा के नाम पर लूट मची हुई ह प्राइवेट स्कूल्स मनमर्जी कर रहे हैं बाजार का नियम क्या है? जिस चीज की ब्रांड वैल्यू होती है वह चीज आसानी से महंगे दामों में बिक जाती है जिस चीज की ब्रांड वैल्यू नहीं होती चाहे भले ही वह गुणवत्ता में अच्छी हो पर वह नही बिकती कुछ ऐसा ही अंतर निजी स्कूलों और सरकारी स्कूलों के चुनाव में अभिभावकों के द्वारा किया जाता है प्राइवेट स्कूल यानी निजी विद्यालयों की लूट एक व्यापार है। सभी जानते हैं जो दिखता है वही बिकता है। एक अच्छे व्यापारी की तरह निजी विद्यालय भरपूर दिखावा करते हैं-दिखावे का दिखावा, अच्छाई का दिखावा और अच्छी से अच्छी शिक्षा प्रदान करने का भी दावा करते हैं यही एक अच्छे व्यापारी की पहचान है कि वे अपने ग्राहकों को इस दिखावे से मंत्रमुग्ध कर के अपनी ओर आकर्षित कर लेता हैं दिखावे के नाम पर ही यही निजी विद्यालय अभिभावकों के दिमाग से खेलते हैं। अभिभावकों को लगने लगता है कि उनके बच्चों का भविष्य इन्हीं स्कूलों में निहित है। अगर उनके बच्चे इन स्कूलों में ना पढ़े तो उनका भविष्य गर्त में समा जाएगा और यहीं से निजी विद्यालयों की लूट शुरू हो जाती है जानकारी के अनुसार संपूर्ण भारत में शिक्षा अधिकार अधिनियम लागू है और राजस्थान में भी लागू है उस अधिनियम के अंतर्गत भर्ती होने वाले बच्चों को सरकार द्वारा स्कूलों को फीस के साथ साथ पुस्तक और ड्रेस के पैसे भी दिए जाते हैं परंतु बड़ी विडंबना के साथ कहना पड़ रहा है जानकारी के अभाव में प्राइवेट स्कूल सरकार के शिक्षा अधिनियम की धज्जियां उड़ा रहे हैं शिक्षा अधिनियम के अंतर्गत पढ़ने वाले बच्चों से लूट मचा रहे हैं अभिभावक लूट रहे हैं स्कूल वालों का कहना है कि सरकार हमें हमारे पाठ्यक्रम में संचालित पुस्तकों का पूरा पैसा नहीं देती तो वही आम जन को इस अधीनियम का फायदा नहीं मिल रहा जिस से अभिभावक अपने को लुटा हुवा महसूस कर रहे हैं जानकारी के अनुसार शिक्षा अधिनियम के अंतर्गत पढ़ने वाले बच्चों को पुस्तकों की पुनर्भरण राशि अभिभावकों मिलनी चाहिए परंतु इस मामले में भी स्कूल वाले अभिभावकों को पूरी जानकारी नहीं देते ईस अधीनियम की जानकारी पूरी तरह से आम जन तक पहुंचाने का काम भी सरकार का ही ह अभिभावको को इस अधिनियम की पूरी जानकारी होने से उनका हक जो सरकार द्वारा दिया जा रहा है आसानी से प्राप्त कर सकते हैं किताबों से लेकर हर छोटी बड़ी चीज स्कूल में दोगुने तिगुने दामों पर बेची जाती है प्राइवेट प्रकाशक की किताबों के साथ कॉफी व अन्य स्टेशन का सेट नर्सरी से पहली कक्षा तक के बच्चों को दो से तीन हज़ार कक्षा दो से पांचवी तक चार से पांच हज़ार रुपए वसूल रहे हैं अब बात करते ह स्थानीय शिक्षा विभाग के अधिकारियों की तो इन सब बातों की जानकारी उनको भी है लेकिन वे चुप है कमीशन खाने के चक्कर में छात्रों के कंधों पर भारी बस्ते का बोझ लादा जा रहा है जिससे उनके स्वास्थ्य पर भी गलत प्रभाव पड़ रहा है फिल्म अभिनेता इरफान खान ने जिस फिल्म में एक सशक्त किरदार निभाया, वह भी सत्य घटना से प्रेरित थी जिसका नाम था ‘हिंदी मीडियम’। इन बड़े नामी-गिरामी स्कूलों में दाखिला कराने के लिए अभिभावक क्या-क्या करने पर विवश हो जाते हैं यह पूरी तरह फिल्म में दिखाया गया है सरकार ने यह अधिनियम शिक्षा से वंचित कोई बच्चा ना रहे इसी लिए बनाया गया था परंतु देखने को मिल रहा है इस अधिनियम की पालना पूरी तरह से निजी विद्यालय नहीं कर रहे हैं शिक्षा के मंदिर को कुछ लोगों ने व्यापार बना लिया है जिनकी अंदर ही अंदर बहुत ऊंची पहुंच होती है जो आम आदमी या यू कहिये की अभिभावकों द्वारा समझना बहुत मुश्किल है अधिनियम के द्वारा मिल रहा लाभ आम लोगों तक नहि पहुंच रहा है अफसोस वोट बैंक की राजनीति ने सरकार के कदम रोक रखे हैं आखिर हो भी क्यों नहीं सत्ता पाने को फंड इन्हीं नामी गिरामी स्कूलों के मालिकों द्वारा दिया जाता है और आप को बता दे कई स्कूल मे तो सरकार के नुमाइंदों की हिस्सेदारी भी होती है जिस कारण भी शिक्षा अधिनियम का लाभ आमजन तक नहीं पहुंच रहा

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