भीतरघात का खेल शुरू हुआ तो कार्यकर्ता भी जागरूक होकर प्रचार से पीछे हटने लगे:- शमीम अहमद वरिष्ठ पत्रकार

भीतरघात का खेल शुरू हुआ तो कार्यकर्ता भी जागरूक होकर प्रचार से पीछे हटने लगे:- शमीम अहमद वरिष्ठ पत्रकार

 

ब्यूरो रिपोर्ट

बिजनौर। आगामी 2024 के होने जा रहे लोकसभा चुनावों को लेकर सभी पार्टियो के प्रत्याशियों द्वारा जी तोड़ मेहनत की जा रही है! अभी तक सभी पार्टी के प्रत्याशी ने जनता से अपनी जीत का दावा कर रहे है। जबकि एक ही प्रत्याशी जीत कर संसद में पहुचेगा। अब बात करे नगीना सुरक्षित सीट की तो कई पार्टियों ने मिल कर एक संगठन बनाया है इंडिया के नाम से ताकि अन्य सभी पार्टियों के प्रत्याशियों को हराकर दिल्ली में अपनी सरकार बना सके! लेकिन नगीना लोकसभा 5 की बात करे तो सूत्र बताते है कि समाजवादी पार्टी में अभी से ही आपस मे राजनीति होना शुरू हो गया है! जिससे ये अनुमान लगाया जा रहा है कि इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी के साथ भीतरघात होना दर्शा रहा है। कई जगह ये देखने को मिला है सपा के लोग एक दूसरे को पचा नहीं पा रहे है! तो ऐसी स्थिति में किसी भी साफ छवि के प्रत्याशी का जीत हासिल करना बहुत ही कठिन साबित होगा। कई लोगो द्वारा नाम न छापने की शर्त पर बताया गया है कि समाजवादी के जिले से लेकर नगर तक आपसी मतभेद दिखाई दे रहे है। और कुछ लोग तो पार्टी में रहकर भी किसी अन्य पार्टी के प्रत्याशी को अंदर खाने स्पॉट भी कर रहे है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कई नेता तो वही बात कर रहे जैसे कहा जाता है कि हाथी के दांत दिखाने के और होते है और खाने के और यही कहावत कुछ सपा के नेताओ पर भी साबित होती नजर आरही है। हालांकि सूत्र बताते है ऐसे कई लोगो को हाई कमान की चेतावनी भी मिल चुकी है! अब देखना ये है कि ऊँट किस करवट बैठता है।एक समय था जब हर पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता जी-जान लगाकर अपने दल को जीतने के लिए कई दिनों तक मुफ्त सेवाएं देते थे और ग्रामीण क्षेत्र में प्रचार के लिए भूखे पेट भी प्रचार करते थे! लेकिन जबसे दलबदल का खेल शुरू हुआ तो कार्यकर्ता भी जागरूक होकर प्रचार से पीछे हटने लगे क्योंकि इनको मालूम हो चुका हैं कि कब हमारा नेता दलबदल लेगा और हम अहसाय होकर बीच सड़क पर खड़े के खड़े रह जाएंगे! तो वही अब कुछ कार्यकर्ताओं को अच्छे खाने-पीने के साथ पर्याप्त राशि का भुगतान चाहिए! जब अब कुछ कार्यकर्ताओ के कारण चुनाव में इस तरह के खर्च में बढ़ोतरी होगी तो लोकतंत्र का मकसद कैसे पूरा होगा! इसका अंदाजा लगाया जा सकता है! इस बार फिर चुनावों में खर्च को लेकर सभी दल उत्साहित दिख रहे हैं! हालांकि माना जा सकता है कि सर्वाधिक खर्च सत्ता के कुछ नेताओं के द्वारा होगा जो शायद निर्धारित खर्च सीमा से कई गुना अधिक भी कर सकता हैं! दरअसल प्रत्येक प्रत्याशियों के लिए राशि निर्धारित है लेकिन अगर पार्टी द्वारा प्रत्याशियों पर कि जाने वाले खर्च को प्रत्याशी के खर्चे में नही जोड़ा जाएगा तो जाहिर है इस रास्ते से असीमित धन खर्च होगा! जिस पर आयोग की कोई पाबंदी नहीं रहेगी! ऐसा लगता है कि हमारा लोकतंत्र अब बहुत महंगा पड़ने लगा है! कम खर्चे में चुनाव करवाने के रास्ते खोजने होंगे!

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