निजी स्कूलों में शिक्षा: महंगाई और अवैध वसूली के खिलाफ एक विचारशील दृष्टिकोण
शारिक ज़ैदी विशेष संवाददाता
बिजनौर। आजकल की तेजी से बदलती शिक्षा के परिदृश्य में निजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना बहुत महंगा हो गया है, जो गरीब परिवारों के लिए यह एक चुनौती बन चुका है। निजी स्कूलों ने न केवल उच्च शैक्षिक मानकों के लिए अपनी पहचान बनाई है बल्कि इसमें विद्यार्थियों की प्रगति के लिए स्वार्थपरता भी छुपी है, जो अवैध वसूली के रूप में उजागर हो रही है।
आजकल बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना एक आम सामाजिक मुद्दा बन चुका है, क्योंकि यह बहुत महंगा पड़ रहा है। स्कूल यूनिफॉर्म, स्कूल कोर्स, और अन्य अवसरों पर निजी स्कूलों द्वारा की जा रही अवैध वसूली आर्थिक रूप से अभिभावकों की कमर तोड़ रही है।
ग़रीबों के लिए निजी स्कूलों की फीस एक अविश्वसनीय बोझ बन चुकी है, जिससे वे अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं। निजी स्कूलों द्वारा की जा रही इस तरह की अवैध वसूली के खिलाफ अभिभावकों की एकजुटता नहीं होने से इस समस्या का समाधान करना और सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है।
गरीब के लिए इससे उच्च शिक्षा की ऊँचाइयों तक पहुँच पाना और अपने बच्चों को इंग्लिश माध्यम स्कूलों में पढ़ाना एक चुनौती बन चुकी है। निजी स्कूलों द्वारा की जा रही इस तरह की अवैध वसूली के खिलाफ अभिभावकों की एकजुटता की कमी ने इस मुद्दे को और भी गहरा बना दिया है।
सरकार को इस मामले पर गंभीरता से विचार करने और उचित कदम उठाने की ज़रूरत है। निजी स्कूलों द्वारा ली जा रही महंगी फीस पर नियंत्रण करने और अवैध वसूली के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
एक सुसंगत नीति बनाने के लिए, सरकार को निजी स्कूलों के द्वारा ली जाने वाली फीस को नियंत्रित करने और विभिन्न वर्गों के छात्रों को समर्थन प्रदान करने के लिए सही दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। यह सामाजिक न्याय की प्राप्ति में मदद करेगा और शिक्षा को समर्थन और समानता की दिशा में बढ़ावा देगा।
अधिक महंगाई और अवैध वसूली के खिलाफ सामूहिक जागरूकता और सकारात्मक कदमों के साथ हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि शिक्षा प्राप्त करने के लिए हर बच्चा समर्थ हो चाहे वह जिस भी वर्ग से हो।