नबी की सीरत पूरी दुनिया के लिए है: मुफ्ती उस्मान गनी
दुनिया में इस्लाम तलवार से नहीं इंसानियत से फैला है: शहर इमाम ज़की साहब
(शमीम अहमद)
शेरकोट । जिला बिजनौर के रियासती कस्बा शेरकोट में पहली बार 12 रोजा इजलास सीरत उन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम 24 नवंबर को शहर की शाही जामा मस्जिद मै पूरा हुआ जिसका मकसद हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अलग-अलग पहलुओं पर जिंदगी गुजरने के तरीकों पर रोशनी डालना था ताकि हम उनके बताए हुए रास्तों पर चलकर अपनी जिंदगी को आसान बना सके और दीगर लोगों में भी सच्चाई मोहब्बत इंसानियत के जरिए रहमते दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दुनिया मै सभी के लिए रहमत बनकर आने के वाक्यात को अच्छे ढंग से रख सकें l 2 दिन पूर्व मस्जिद तालीमुल कुरान मै शहर इमाम मौलाना जकी साहब ने बहुत अच्छा खिताब किया था कि दुनिया भर में इस्लाम तलवार से नहीं इंसानियत से फैला है जिनको समझा नहीं आता है वह आलिम के पास बैठे दर्स हासिल करें । लोगों ने उनकी बातो को बड़ी दिलचस्पी से सुना और सराहा जानकारी के लिए फैज़याब हुए ।
आज बाद नमाज ईशा जनाब मुफ़्ती मुहम्मद ज़ाहिद साहब की तिलावत-ए-पाक से शुरू हुआ प्रोग्राम, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान-ए-अक़दस में नआ त का हदिया पेश करते हुए जलसे की निज़ामत के फ़राइज़ शहर क़ाज़ी व इमाम जामा मस्जिद मुफ़्ती मुहम्मद ज़की एजाज़ ख़ान क़ासमी ने खूबसूरत अंदाज में अन्जाम दिये । वर्ल्ड लेवल पर पहचान रखने वाले इदारे दारुल उलूम देवबंद के उस्ताद-ए-तफ़सीर व फ़िक़्ह हज़रत अक़दस अल्लामा मुफ़्ती उस्मान ग़नी साहब ने अपने अहम ख़िताब मे क़ुरआन और हदीस के हवाले से मुसलमानों को नसीहत दी कि अल्लाह के अलावा किसी की इबादत नहीं की जा सकती है। इसी तरह हमारे लिए अल्लाह के बंदों के हक़ अदा करना भी बेहद ज़रूरी है जिसमें सबसे पहले माँ-बाप को ख़ुश रखना है ताकि अल्लाह राज़ी हो जाए। उनके बाद रिश्ते-नातों को निभाना दीन-ए-इस्लाम का अहम हिस्सा है जबकि देखने में आता है की ज़्यादातर लड़ाइयाँ क़रीबी रिश्तेदारों में ही रहती हैं, उसको ख़त्म करना बेहद जरूरी है। साथ ही यह यतीमों और मिस्कीनों की ख़िदमत करना है। मुफ़्ती साहब ने पड़ोसियों के हुक़ूक़ पर रोशनी डालते हुए फ़रमाया कि हम पर उनका भी हक़ है चाहे वह हमारे ख़ानदानी हों या अजनबी हों, इसी तरह चाहे वह मुसलमान हों या दूसरे किसी धर्म और मज़हब को मानने वाले हों, सिर्फ़ पड़ौसी होने के नाते उनसे हमदर्दी रखना और उनके दुख सुख में खड़ा होना हमारी दिनी ज़िम्मेदारी है। क़ुरआन की आयत के हवाले से उन्होंने बतलाया कि हमें अपने पास बैठने वालों का भी ख़्याल रखना ज़रूरी है कि हम से किसी को तकलीफ़ ना पहुंचे, यहां तक की अगर कोई राहगीर और मुसाफ़िर नज़र आए तो उसके हाल-चाल जानना और काम आना अल्लाह त्आला का हुक्म है। आख़िर में मुफ़्ती साहब ने बतलाया कि इस्लाम मज़हब में अपने से छोटे लोगों और नौकर-चाकर वग़ैरा से भी अच्छी तरह बर्ताव करने की ताकीद की गई है। घरों के अंदर अपनी बीवियों का दिल रखना और छोटों से नरमी के साथ पेश आना हमारा फर्ज़ है। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुबारक जिंदगी के हालात को सामने रखते हुए हर मुसलमान अपने आप को संवारे और दुनिया के सामने नबी के बेहतरीन किरदार को पेश करे। 8 नवंबर से शुरू हुए सीरतुन्नबी के प्रोग्रामों में ख़िताब करने वाले उलामा-ए-किराम मुफ़्ती मुहम्मद दानिश साहब, मौलाना शाहिद साहब, मुफ़्ती रियाज़ साहब अफ़ज़लगढ़, मौलाना हसीबुर्रहमान साहब, मुफ़्ती फ़ैज़ान साहब, मुफ़्ती दानिश साहब शेरकोट जामा मस्जिद के इमाम मुफ़्ती ज़की साहब,धामपुर, क़ारी ख़ालिद अशरफ साहब, मौलाना अफ़ज़ाल साहब, मुफ़्ती रिहान साहब, मुफ़्ती शाहिद साहब माज़ाहिरी, मौलाना उबैदुर्रहमान कासमी , मौलाना अब्दुल्ला कासमी , कारी मुहम्मद इलियास कासमी को शील्ड देकर नवाजा गया मुफ्ती साहब की दुआ के बाद इजलास खत्म हुआ शहर इमाम ने तमाम हाजरीन का शिरकत के लिए शुक्रिया अदा किया ।